Description
कर्म और ज्ञान: कर्म और ज्ञान के बीच के संबंध को समझाया गया है, और यह बताया गया है कि कर्म के बिना ज्ञान अधूरा है।
कर्म की महत्ता: समाज और व्यक्तिगत विकास के लिए कर्म की अनिवार्यता पर जोर दिया गया है।
स्वधर्म और परधर्म: अपने धर्म (कर्तव्यों) का पालन करने की महत्ता और दूसरों के धर्म का अनुकरण करने के खतरों पर चर्चा की गई है।
कर्मयोग का अभ्यास: कर्मयोग के अभ्यास के विभिन्न चरणों और उसके लाभों का वर्णन किया गया है।